“देह व्यापार के बिना, कोई नौकरी नहीं है। बॉलीवुड चुप क्यों है?” शोभा डे ने मलयालम फिल्म उद्योग पर निशाना साधा
दिल्ली: मलयालम फिल्म उद्योग में हाल ही में एक तूफान आया है। जस्टिस हेमा आयोग की रिपोर्ट जारी होने के बाद, महिला अभिनेत्रियाँ यौन शोषण के खिलाफ़ खुलकर आवाज़ उठा रही हैं। #MeeToo की तरह, अब महिला फ़िल्म अभिनेत्रियाँ मलयालम फ़िल्म उद्योग के काले सच को उजागर कर रही हैं, जिसने कई प्रसिद्ध अभिनेताओं और निर्देशकों को प्रभावित किया है। लेखिका शोभा डे ने इस मुद्दे पर बॉलीवुड की चुप्पी और मलयालम फ़िल्म निर्देशक मोहनलाल के गायब होने की कड़ी आलोचना की है।
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अब तक करीब एक दर्जन से ज्यादा एक्टरों, डायरेक्टरों और प्रड्यूसरों को रेप और यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना करना पड़ा है. मोहनलाल ने एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी एक्टर्स (AMMA) के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था. लेखिका शोभा डे ने इस कायरता के लिए मोहनलाल को जिम्मेदार ठहराया. उनका कहना है कि मोहनलाल ने उस पद पर रहते हुए लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के बजाय पद से इस्तीफा दे दिया. उनका कहना है कि फिल्म निकाय की कार्यकारी समिति के सभी सदस्यों ने भी इस्तीफा दे दिया. शोभा डे ने कहा, उठो और इंसान बनो, अपनी टीम के अन्य सदस्यों से पीड़ितों की जिम्मेदारी लेने और उन लोगों की मदद करने के लिए कहो.
हेमा कमेटी की रिपोर्ट पर 5 साल तक कुछ नहीं होना दुखद
शोभा डे ने NDTV से कहा कि इस मामले में दुख की बात यह है कि करीब 5 सालों तक जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट वहीं पड़ी रही, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया. अपने रोज के कामकाज और हालात से निराश मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की कुछ महिलाओं ने एक अलग ग्रुप शुरू किया. ये महिलाएं 15-20 पुरुषों द्वारा नियंत्रित एक क्लब से परेशान थीं, जो न सिर्फ उनके कामकाजी बल्कि उनकी निजी लाइफ पर भी पूरा कंट्रोल कर रहे थे.
“2017 में किडनैपिंग और रेप का मामला सामने आया था. आज मलयालम फिल्म इंडस्ट्री को लेकर लोगों के रिएक्शन सामने आ रहे हैं. मलयालम सिनेमा के लिए यह नया नहीं है. यह बहुत ही व्यापक है. यह बॉलीवुड में भी हो रहा है और बंगाली और कर्नाटक फिल्म इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं है.
महिलाएं पूरी तरह से आवाजहीन और शक्तिहीन
शोभा डे ने #MeToo मामलों के पीछे एक बड़ी वजह “पितृसत्तात्मक व्यवस्था” को बताया, जिसने फिल्म इंडस्ट्री पर कब्जा जमाया हुआ है. उन्होंने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री जिस तरह से काम करती है, वह बहुत ही घृणित, जहरीली पितृसत्तात्मक व्यवस्था है. महिलाएं पूरी तरह से आवाजहीन और शक्तिहीन लगती हैं, इसलिए चीजों को बदला जाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि मैं बहुत ही निराश हूं, हैरान हूं कि यह सब हो रहा है और मोहनलाल की अध्यक्षता वाली स्ट्रॉन्ग कार्यकारी समिति को सामूहिक रूप से इस्तीफा देना पड़ा, इससे क्या मदद मिलेगी?
शोभा डे का कहना है कि अच्छा नेतृत्व वह होता कि वह जहां हैं वहीं रहकर महिलाओं के खिलाफ हिंसा के अपराधियों के खिलाफ कुछ कार्रवाई करते. लेकिन कहानी इसके उलट है. महिलाओं से अनैतिक डिमांड की जा रही है. यहां तक कि सेट पर टॉयलेट जैसी बेसिक सुविधाएं भी उनको नहीं दी जा रही हैं. यह बहुत ही अमानवीय होने के साथ ही संवेदनशील भी है. लोगों को इसके बारे में नहीं पता था, इसीलिए उन्होंने कुछ नहीं किया. उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि इस मुद्दे पर बॉलीवुड से भी किसी भी मजबूत पुरुष की आवाज नहीं उभरी. जिन एक्टर्स ने ये देखा है, उन्होंने भी कुछ नहीं बोला. उन्होंने कहा कि महिला हो या पुरुष, जब भी बोलने की जरूरत महसूस हो तो जरूर बोना चाहिए.
“इंडस्ट्री ने एक दूसरे के साथ समझौता कर लिया”
शोभा डे ने कहा कि ऐसा लगता है कि सबके बीच एक समझौता हुआ है, कि इंडस्ट्री नें कोई एक दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. जो चल रहा है, उस पर ध्यान नहीं दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि हेमा कमेटी की रिपोर्ट में जो भी है, वह कोई नई बात नहीं है. बॉलीवुड ने अपनी महिलाओं को नहीं बख्शा, इसी लिए कितनीही महिलाएं आवाज उठा पाती हैं. क्या कभी आपने बंगाल फिल्म इंडस्ट्री की महिलाओं के बारे में सुना है.
बॉलीवुड की आवाज तक नहीं निकल रही
शोभा ने डे ने कहा कि “बॉलीवुड के बड़े स्टार्स कहां हैं, उन्होंने इतना भी नहीं कहा कि ‘हम पीड़ितों के साथ खड़े हैं, हम इन पीड़ितों के साथ एकजुटता से खड़े हैं, जो इंडस्ट्री में पुरुषों की वजह से परेशान हैं. उन्होंने कहा कि जब तक वह समीकरण नहीं बदलेगा, कुछ भी ज्यादा बदलता नहीं दिख रहा, क्योंकि पुरुषों का नियंत्रण है. वही तय करते हैं कि कौन अंदर जाएगा और कौन बाहर रहेगा, किसे नौकरी मिलेगी, किसे भूमिका मिलेगी. कौन सी महिलाएं एक निर्देशक, निर्माता, एक कैमरापर्सन के साथ बिस्तर पर जाने को तैयार